Vidroh | Vidrohi | विद्रोह | विद्रोही
है कही भी द्रोह तो, विद्रोह को साकार दे
है तेरे हाथ तेरी जिंदगी, तू जिंदगी सँवार दे
हुई भला ये बात क्या जिगर में भी धुआँ रहे
है गर जिगर में आग तो, धरा पे तू उतार दे।
hai kahi bhi droh to, vidroh ko sakar de hai tere hath tere jindagi, to jindagi savar de hui bhala ye baat kya jigar mein bhi dhuan rahe hai gar jigar mein aag to, dhara pe tu utar de.
तुम्हारी खातिर विद्रोह | Tumhari Khatir Vidroh
केवल केवल तेरे बारे में सोचूँ मुझपे कुछ सोचा जाए ये भी तो
तेरे दिल की हर बात लिखूँ पर मेरे बारे लिखा जाए ये भी तो
तेरी खातिर दुनिया से हमने खुद को फानी कर रखा है पर
तेरे अंदर बाहर हालात पूछूँ पर मैं कैसा हूँ पूछा जाए ये भी तो।

keval keval tere baare mein sochu mujhpe kuch socha jaye ye bhei to tere dil ki har baat likhu par mere baare likha jae ye bhi to, teri khatir duniya se hamne khud ko phani kar rakha hai par tere andar bahar halaat puchhun par main kaisa hu puchha jaye ye bhi to..!
Zindagi Se Vidroh | ज़िन्दगी से विद्रोह
लटक रही है झटक रही है जिंदगी
चटक रही है अटक रही है जिंदगी
कभी – कभी मुझ को भी लगता है
सीधे रस्तों पे भटक रही है जिंदगी।

latak rahi hai jhatak rahi hai jindagi chatak rahi hai atak rahi hai jindagi kabhi - kabhi mujh ko bhee lagta hai sidhe raston pe bhatak rahi hai jindagi.
मन से विद्रोह | Man Se Vidroh
शब्दों में रंग समेटो इस तरह
ख्वाबों ख्यालों में होलियाँ उतरें
स्याही में बारूद भर के लिखो
कि कागज पर गोलिया उतरें।

shabdon mein rang sameto is tarah khwabon khyalon mein holiya utaren syahee mein baarood bhar ke likho ki kaagaj par goliya utaren.
सपनो से विद्रोह | Sapno Se Vidroh
क्या कहूँ किस तरह हर रोज मैं आगे को बढ़ता हूँ
कभी अपने से लड़ता हूँ कभी अपनों से लड़ता हूँ
लड़ने भिड़ने का किस्सा यही पर रुक नहीं पाता
कभी सपनों में जाकर मैं अपने सपनों से लड़ता हूँ।

kya kahoon kis tarah har roj main aage ko badhata hoon kabhee apane se ladata hoon kabhee apanon se ladata hoon ladane bhidane ka kissa yahee par ruk nahin paata kabhee sapanon mein jaakar main apane sapanon se ladata hoon.
तुफानो से विद्रोह | Tufano Se Vidroh
तूफां को गुमांं है अंधेरों को फखर है
इस थरथराती धरा पे अंधेरी डगर है
पर बात बन जाएगी राह तन जाएगी
एक बूँद रौशनी भी जलती अगर है।

toophaan ko gumaann hai andheron ko phakhar hai is tharatharaatee dhara pe andheree dagar hai par baat ban jaegee raah tan jaegee ek boond raushanee bhee jalatee agar hai.
रिश्तों से विद्रोह | Riston Se Vidroh
जो साथ न दे सके वो हाथ टूट जाएंं तो बेहतर है
और कभी कभी कुछ रिश्ते टूट जाएं तो बेहतर है।

jo saath na de sake vo haath toot jaenn to behatar hai aur kabhee kabhee kuchh rishte toot jaen to behatar hai.

विशाल नारायण ‘विद्रोही’
पिता :- स्व० बीरेंद्र कुमार सिंह (भूतपूर्व सहपुस्तकालयाध्यक्ष, श्री शंकर महाविद्यालय, सासाराम)
ग्राम :- सखुआँ, सासाराम, जिला रोहतास, बिहार
शिक्षा:- डिप्लोमा( इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), बी.ए.( लोक प्रशासन), बी.एस सी.( इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग), एम. ए. ( लोक प्रशासन), एम.ए. (हिंदी)
केन्द्रीय सेवाओं में संलिप्तता के साथ नियमित लेखन। 05 साझा संकलन प्रकाशित। मासिक पत्र पत्रिकाओं के लिए नियमित लेखन। यू ट्यूब पर कई गीत एवं नाटकों के लिए लेखन।
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